राधे राधे आजका भगवत चिन्तन
जब गुरु बोले तो उसके शब्दों में गंगा जमुना के रंग होते हैं
फरमाया गया है कि शिष्य वह है, जो गुरु के शब्दों को ही नहीं सुनता बल्कि शब्दों के बीच के शून्य को भी सुनता है । भक्त गुरु की पंक्तियां ही नहीं पढ़ता बल्कि पंक्तियों के बीच के रिक्त स्थान को भी पढ़ लेता है । तभी ज्ञान रुपी सरस्वती की पकड़ आती है । वही तो जीवन की असली बात है ।
पश्चिमी लोगों में संवाद होता है ; यानि गुरु बोलता है और शिष्य सुनता है । पूर्ववासी जानते हैं उस घड़ी sको, जब ना गुरु बोले ना शिष्य सुनें । चुपचाप बोलना भी हो जाए और सुनना भी हो जाए । अर्थात सब कुछ मौन में ही हो जाए । यानि हृदय से हृदय मिल जाए । ध्यान रखना कि बोलना तो बुद्धि दिमाग का काम होता है ।
इसी प्रकार सत्संग बोलकर भी होता है और अबोल भी हो जाता है । असली सत्संग तो ‘दिल की बात’ की तरह अबोल ही होता है साथी । जब गुरु बोले तो उसके शब्दों में गंगा जमुना के रंग होते हैं । शब्दों के बीच अदृश्य सरस्वती की धारा को गुरु का भक्त पहचान लेता है । शिष्य बोलता नहीं अबोल उसकी अर्चना है । गुरु बोलता नहीं लेकिन मौन उसकी देशना है ।
जय श्री कृष्णा
जय जय श्री राम
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