पिनाक की कथा – बालकाण्ड
दूसरे दिन प्रातःकाल राजा जनक से महर्षि विश्वामित्र ने कहा, हे राजन्!, दशरथ के इन दोनों कुमारों की इच्छा पिनाक नामक धनुष को देखने की है। अतः आप इनकी इच्छा पूर्ण करने की व्यस्था कर कीजिये।
राजा जनक के कुछ कहने से पूर्व ही राम ने कहा, हे नरश्रेष्ठ!, पहले आप हमें पिनाक का वृत्तान्त सुनाइये। हमने सुना है कि पिनाक शंकर जी का प्रिय धनुष है। शिव जी के पास से यह आपके पास कैसे आया?
इस पर मिथिलापति जनक बोले, हे राम!, एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बड़ा विशाल यज्ञ किया। दक्ष जी शंकर जी के श्वसुर थे। अपने जामाता से अप्रसन्न के कारण उन्होंने उस यज्ञ में न तो शिव जी को आमन्त्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को।
पति के समझाने बुझाने की परवाह न करके सती अपने पिता के यहाँ यज्ञ में पहुँच गईं। वहाँ सती का बहुत अपमान हुआ। सती ने देखा कि देवताओं के लिये यज्ञ का जो भाग निकाला गया था उसमें शिव जी का भाग था ही नहीं।
इससे क्रुद्ध होकर सती ने यज्ञकुण्ड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिये। महादेव जी के गणों ने, जो सती के साथ राजा दक्ष के यहाँ आये थे, लौट कर महादेव जी को सारा वृत्तान्त बताया। सती की मृत्यु की सूचना पाकर महादेव जी बड़े क्रुद्ध हुये।
उन्होंने राजा दक्ष की यज्ञ भूमि में जाकर उस यज्ञ को नष्ट कर डाला। फिर वे अपना पिनाक नामक धनुष चढ़ा कर देवताओं को मारने के लिए अग्रसर हुए क्योंकि देवताओं ने उस यज्ञ का भाग महादेव जी को नहीं दिया था।
महादेव जी का यह रौद्र रूप देखकर सारे देवता बहुत भयभीत हुये। देवताओं ने अनुनय विनय करके महादेव जी का क्रोध शान्त कराया। क्रोध शान्त होने पर महादेव जी ने पिनाक को देवताओं को दे दिया और कैलाश पर्वत पर लौट गये।
देवताओं ने उस धनुष को हमारे पूर्वपुरुष देवरात को दे दिया। तभी से वह धनुष हमारे यहाँ रखा है। हमारे पूर्वजों का स्मृति-चिह्न होने के कारण हम इस धनुष की देखभाल सम्मान के साथ करते आ रहे हैं।
इसी बीच एक बार हमारे राज्य में अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ गया जिससे प्रजाजनों को भयंकर कष्ट का सामना करना पड़ा। उस कष्ट से मुक्ति पाने के लिये मैंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। पुरोहितों के आदेशानुसार मैंने अपने हाथों से खेतों में हल चलाया।
हल से भूमि खोदते खोदते भगवान की इच्छा से मुझे एक परम रूपवती कन्या प्राप्त हुई। उसे मैं अपने राजमहल में ले आया और उसका नाम सीता रखकर अपनी पुत्री के समान उसका लालन-पालन करने लगा।
जब सीता किशोरावस्था को प्राप्त हुई तो दूर दूर तक उसके सौन्दर्य एवं गुणों की ख्याति फैलने लगी। देश-देशान्तर के राजकुमार उसके साथ विवाह करने के लिये लालायित होने लगे।
मैं अद्भुत पराक्रमी योद्धा के साथ ही सीता का विवाह करना चाहता था अतः मैंने यह प्रतिज्ञा कर ली कि शिव जी के धनुष पिनाक पर प्रत्यंचा चढ़ा देने वाला वीर राजकुमार ही सीता का पति होगा।
मेरी प्रतिज्ञा की सूचना पाकर सहस्त्रों राजकुमार और राजा-महाराजा समय समय पर अपने बल की परीक्षा करने के लिये यहाँ आये किन्तु पिनाक पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर वे उसे तिल भर खिसका भी न सके।
जब वे अपने उद्देश्य में इस प्रकार निराश हो गये तो वे सब मिलकर मेरे राज्य में उत्पात मचाने लगे। मेरे प्रदेश को चारों ओर से घेर लिया और निरीह प्रजाजनों को लूटकर आतंक फैलाने लगे। मैं अपनी सेना को लेकर उनके साथ निरन्तर युद्ध करता रहा। वे अनेक राजा थे।
उनके पास सेना भी बहुत अधिक थी। इसलिये इस संघर्ष में मेरी बहुत सी सेना नष्ट हो गई। इस पर मैंने भगवान को सहारा मान कर उनकी तपस्या की। मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने मुझे देवताओं की चतुरंगिणी सेना प्रदान की।
उस सेना ने आततायी राजाओं के साथ भयंकर युद्ध किया और सभी उपद्रवी राजकुमारों को भगाया। उनके भाग जाने के बाद मैंने सोचा कि एक विशाल यज्ञ करके इस अवसर पर ही अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँ और सीता का विवाह कर निश्चिन्त हो जाऊँ।
इसी लिये मैंने इस महान यज्ञ का आयोजन किया है। अब जो कोई भी महादेव जी के इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी वीर पुरुष के साथ मेँ अपनी अनुपम गुणवती पुत्री सीता का विवाह करके निश्चिन्त हो जाउँगा।
Ramayan, Ramayana, Ram Katha, Ramayan Katha, Shri Ram Charit Manas, Ramcharitmanas, Ramcharitmanas Katha, Sri Ram Katha, Ramayan Parayan, Ram, Sita Ram, Siya Ke Ram, He Ram, Sita Ram, Siya Ke Ram, Bal Kand, Ramayan, Valmiki Ramayan, Tulsi Ramayan, Ramayan Katha, Katha Ramayan ki, Sita, Ram, SitaRam, Laxman, Bharat, Shatrudhna, Hanuman, Dashrath Raja, Kaushalya, Kaikeyi, Sumitra, Mantra, Urmila, Mandavi, Shurtkirti, Guh, Kevat, Sumant, Sugriv, Jamvant, Bali, Angad, Jamvant, Jatayu, Vibhishan, Ravan, Mandodari, Indrajit, Meghnad, Akshayjumar, Anhi Ravan.