कुंती – वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ
कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं।
एक बार कुंती की सेवा से ऋषि दुर्वासा ने प्रसन्न होकर उन्हें एक गुप्त मंत्र दिया और कहा, इस मंत्र जप से जिस भी देवता का स्मरण करोगी वह तुम्हारे समक्ष उपस्थित होकर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करेगा।
एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न इस मंत्र की जांच कर ली जाए। कहीं यह यूं ही तो नहीं? तब उन्होंने एकांत में बैठकर उस मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव का स्मरण किया।
सूर्यदेव प्रकट हो गए
उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हो गए। कुंती हैरान-परेशान अब क्या करें? तब कुंती ने कहा, ‘हे देव! मुझे आपसे किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं है।
मैंने मंत्र की सत्यता परखने के लिए जाप किया था।’ कुंती के इन वचनों को सुनकर सूर्यदेव बोले, ‘हे कुंती! मेरा आना व्यर्थ नहीं जा सकता।
मैं तुम्हें एक अत्यंत पराक्रमी तथा दानशील पुत्र देता हूं।’ इतना कहकर सूर्यदेव अंतर्ध्यान हो गए।
जब कुंती हो गई गर्भवती, तब लज्जावश यह बात वह किसी से नहीं कह सकी और उसने यह छिपाकर रखा।
समय आने पर उसके गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। कुंती ने उसे एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया।
वह बालक गंगा में बहता हुआ एक किनारे से जा लगा।
उस किनारे पर ही धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने अश्व को जल पिला रहा था।
उसकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी।
उसकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी। अधिरथ ने उस बालक को उठा लिया और अपने घर ले गया। अधिरथ निःसंतान था।
अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था। राधा ने उस बालक का अपने पुत्र के समान पालन किया। उस बालक के कान बहुत ही सुन्दर थे इसलिए उसका नाम कर्ण रखा गया।
इस सूत दंपति ने ही कर्ण का पालन-पोषण किया था इसलिए कर्ण को ‘सूतपुत्र’ कहा जाता था तथा राधा ने उसे पाला था इसलिए उसे ‘राधेय’ भी कहा जाता था।
सोचिए यदि महाभारत युद्ध के पूर्व ही यह सार्वजनिक हो जाता कि कर्ण एक सूत पूत्र नहीं है वह तो कुंती का पुत्र है तो युधिष्ठिर की जगह उसे ही सर्वप्रथम राज्य का अधिकार मिलता और दुर्योधन भी तब उसका शत्रु होता।