विजयादशमी
दशहरा की परंपरा
भगवान श्री राम ने लगातार नौ दिनों तक लंका में रहकर रावण से युद्ध किया. फिर दशमी के दिन उन्होंने रावण की नाभि में तीर मारकर उसका वध कर दिया था.
कहते हैं कि भगवान श्री राम ने मां दूर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था. श्री राम की परीक्षा लेते हुए मां दुर्गा ने पूजा के लिए रखे गए कमल के फूलों में से एक फूल को गायब कर दिया.
राम को कमल नयन कहा जाता था इसलिए उन्होंने अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया. ज्यों ही वह अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुईं और विजयी होने का वरदान दिया. फिर दशमी के दिन श्री राम ने रावण का वध कर दिया.
अधर्मस्य उपरि धर्मस्य, असत्यस्य उपरि सत्यस्य,
अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई – के विजय का प्रतीक !
दुर्जनतायाः उपरि सज्जनतायाः विजयस्य प्रतीकम्
महिषासुर नाम का एक बड़ा शक्तिशाली राक्षस था. उसने अमर होने के लिए ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. ब्रह्माजी ने उसकी तपस्या से खुश होकर उससे वरदान मांगने के लिए कहा. महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा.
इस पर ब्रह्माजी ने उससे कहा कि जो इस संसार में पैदा हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर जो चाहे मांग सकते हो. ब्रह्मा की बातें सुनकर महिषासुर ने कहा कि फिर उसे ऐसा वरदान चाहिए कि उसकी मृत्यु देवता और मनुष्य के बजाए किसी स्त्री के हाथों हो.
ब्रह्माजी से ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया.
महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया.
शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद दसवे दिन उसका वध कर दिया. इसलिए इस दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है. महिषासुर का नाश करने की वजह से दुर्गा मां महिषासुरमर्दिनी नाम से प्रसिद्ध हो गईं.