श्रीमद्भागवत पुराण

श्रीमद्भागवत पुराण आदरणीय पुराण

इस कलिकाल में ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ हिन्दू समाज का सर्वाधिक आदरणीय पुराण है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है।

इसे भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अधिक समीचीन होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा हैं।

इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है।

‘श्रीमद्भागवत पुराण’ वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला तथा त्रय ताप-आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक आदि का शमन करता है। ज्ञान, भक्ति और वैरागय का यह महान ग्रन्थ है।

इस पुराण में बारह स्कन्ध हैं, जिनमें विष्णु के अवतारों का ही वर्णन है। नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा कही है।

इस पुराण में वर्णाश्रम-धर्म-व्यवस्था को पूरी मान्यता दी गई है तथा स्त्री, शूद्र और पतित व्यक्ति को वेद सुनने के अधिकार से वंचित किया गया है। ब्राह्मणों को अधिक महत्त्व दिया गया है। वैदिक काल में स्त्रियों और शूद्रों को वेद सुनने से इसलिए वंचित किया गया था कि उनके पास उन मन्त्रों को श्रवण करके अपनी स्मृति में सुरक्षित रखने का न तो समय था और न ही उनका बौद्धिक विकास इतना तीक्ष्ण था।

किन्तु बाद में वैदिक ऋषियों की इस भावना को समझे बिना ब्राह्मणों ने इसे रूढ़ बना दिया और एक प्रकार से वर्गभेद को जन्म दे डाला।

‘श्रीमद्भागवत पुराण’ में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। पुराणों के लक्षणों में प्राय: पाँच विषयों का उल्लेख किया गया है, किन्तु इसमें दस विषयों-सर्ग-विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति और आश्रय का वर्णन प्राप्त होता है (दूसरे अध्याय में इन दस लक्षणों का विवेचन किया जा चुका है)।

यहाँ श्रीकृष्ण के गुणों का बखान करते हुए कहा गया है कि उनके भक्तों की शरण लेने से किरात् हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन और खस आदि तत्कालीन जातियाँ भी पवित्र हो जाती हैं।


Shrimad Bhagwat Puran Respected Puran

‘Shrimad Bhagwat Purana’ is the most respected Purana of the Hindu society in this era. This is the main book of Vaishnava sect. In this book, the esoteric and mysterious subjects of Vedas, Upanishads and Philosophy have been described with great simplicity.

It would be more appropriate to call it an encyclopedia of Indian religion and culture. For hundreds of years, this Purana has been playing an important role in establishing the religious, social and secular norms of the Hindu society.

In this Purana coordination of fruitful work, selfless work, knowledge practice, Siddhi practice, devotion, grace, dignity, duality-advait, duality, nirgun-sagun and expressed-unmanifested mysteries is available.

‘Shrimad Bhagwat Purana’ is full of vividness of description and sublime poetic beauty. It is an inexhaustible storehouse of knowledge.

This Purana gives all kinds of welfare and cures all the three types of heat – physical, spiritual and spiritual etc. This is a great book of knowledge, devotion and disinterest.

There are twelve cantos in this Purana, in which only the incarnations of Vishnu are described. In Naimisharanya, on the prayer of Shaunkadi Rishis, Lomaharshan’s son Ugrashrava Sut ji has told the story of twenty-four incarnations of Shri Krishna through this Purana.

In this Purana, Varnashram-religion-system has been given full recognition and women, Shudra and fallen person have been denied the right to listen to Vedas. Brahmins have been given more importance. In the Vedic period, women and Shudras were denied to listen to the Vedas because they neither had the time nor their intellectual development was so sharp to keep those mantras safe in their memory.

But later, without understanding this feeling of Vedic sages, Brahmins made it a stereotype and in a way gave rise to caste discrimination.

In ‘Shrimad Bhagwat Purana’, the divine and supernatural form of Shri Krishna has been described again and again. Usually five subjects have been mentioned in the symptoms of the Puranas, but ten subjects are mentioned in it-Sarga-Visarga, Place, Nutrition, Uti, Manvantar, Ishanukatha, Nirodh, Mukti and Shelter (in the second chapter these ten symptoms are mentioned. has already been discussed).

Describing the virtues of Shri Krishna here, it has been said that by taking shelter of his devotees, even the erstwhile castes like Kirats, Andhras, Pulindas, Pulkas, Abhiras, Kankas, Yavanas and Khasas etc. become pure.

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