सुभाषित
संस्कृत के सुभाषित
सुभाषित शब्द “सु” और “भाषित” के मेल से बना है जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। संस्कृत के सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं।
आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते ।
नीयते तद् वृथा येन प्रामाद: सुमहानहो ।।
सुभाषित का अर्थ
सब रत्न देने पर भी जीवन का एक क्षण भी वापास नहीं मिलता । ऐसे जीवन के क्षण जो निरर्थक ही खर्च कर रहे हैं वे कितनी बडी गलती कर रहे है ।
योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका ।
आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति ।।
सुभाषित का अर्थ
यदि चींटी चल पडी तो धीरे धीरे वह एक हजार योजनाएं भी चल सकती हैं । परन्तु यदि गरूड जगह से नहीं हिला तो वह एक पग भी आगे नहीं बढ सकता ।
शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् ।
सुचिन्तितं चौषधमातुराणां न नाममात्रेण करोत्यरोगम् ।।
सुभाषित का अर्थ
शास्त्रोंका अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख रहते हैं । परन्तु जो कृतिशील हैं वही सही अर्थ में विद्वान हैं । किसी रोगी के प्रति केवल अच्छी भावना से निश्चित किया गया औषध रोगी को स्वस्थ नहीं कर सकता ।
वह औषध नियमानुसार लेनेपर ही वह रोगी स्वस्थ हो सकता है।