सुभाषित
संस्कृत के सुभाषित
सुभाषित शब्द “सु” और “भाषित” के मेल से बना है जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। संस्कृत के सुभाषित जीवन के दीर्घकालिक अनुभवों के भण्डार हैं।
वृत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च ।
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत: ।।
सुभाषित का अर्थ
सदाचार की मनुष्य ने प्रयत्नपूर्व रक्षा करनी चाहिए, वित्त तो आता जाता रहता है । धन से क्षीण मनुष्य वस्तुत: क्षीण नहीं , बल्कि सद्वर्तनहींन मनुष्य हीन है ।
परोपदेशे पांडित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित् सुमहात्मन:
सुभाषित का अर्थ
दूसरों को उपदेश देकर अपना पांडित्य दिखाना बहुत सरल है। परंतु केवल महान व्यक्ति ही उस तरह से (धर्मानुसार)अपना बर्ताव रख सकता है।
इंद्रियाणि पराण्याहु: इंद्रियेभ्य: परं मन: ।
– गीता ३।४२
मनसस्तु परा बुद्धि: यो बुद्धे: परतस्तु स: ।।
सुभाषित का अर्थ
इंद्रियों के परे मन है मन के परे बुद्धि है और बुद्धि के भी परे आत्मा है ।