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अष्टावक्र महागीता – 001

सत्‍य का शुद्धतम वक्‍तव्‍य जनक उवाच। कथं ज्ञानमवाम्मोति कथं मुक्तिर्भविष्यति।वैराग्य ब कथं प्राप्तमेतद ब्रूहि मम प्रभो।। १।। अष्टावक्र उवाच। मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्यज।क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद् भज।। 2।। न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न वायुधौर्न वा भवान्।एषां...